Monika garg

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लेखनी कहानी -03-Jul-2023# तुम्हें आना ही था (भाग:-17)#कहानीकार प्रतियोगिता के लिए

गतांक से आगे:-


ये तो अच्छा था राज ने बगीचे में बैठने से पहले भूषण अंकल को फोन करके बोला दिया था कि उसे देर हो सकती है वो खाने पर उसका इंतजार ना करें और उसके मन को शांति मिले इस लिए उसने अपना मोबाइल भी बंद कर दिया था। इसलिए जब राज उस लड़की के पीछे पीछे जा रहा था तो कोई मोबाइल की घंटी नहीं बजी ।

जब उस लड़की ने मशाल की रोशनी फूंकनी की सहायता से तेज की तो पहले तो वो लड़की का चेहरा देखकर अवाक रह गया फिर धीरे धीरे उसने अपने आसपास का जायजा लिया तो उसकी हैरानी का कोई ठिकाना नहीं रहा क्योंकि वो "लाल हवेली" के आंगन में खड़ा था ।राज ने सोचा, इसका मतलब है वो जंगल वाली चट्टान में लाल हवेली तक जाने की सुरंग है ।फिर अचानक से उसे शास्त्री जी द्वारा बतायी बात याद आई जो उन्होंने उस किताब में से पढ़ कर बताई थी कि लाल हवेली में बहुत से गुप्त रास्ते थे कुछ महल तक आने के थे ।हो सकता है ये रास्ता राजा वीरभान जंगल में आखेट करने के लिए इस्तेमाल करते हों।

  राज एक अलमारी की ओट में खड़ा खड़ा सोच रहा था तभी उसने देखा वो लड़की ऊपर के कमरे की ओर जा रही थी और मशाल उसके हाथ में थी पीछे-पीछे उसके माता-पिता भी जा रहे थे ।राज उनसे दूरी बनाकर चल रहा था और वो लड़की उसी कमरे में चली गई जिस में आज भूषण प्रसाद को वो आदमकद शीशे के पीछे दरवाजा मिला था।राज भी दबे पांव ऊपर सीढ़ियां चढ़ने लगा।उसने कमरे में झांक कर देखा तो वो लड़की एक जाली नुमा ओट में कपड़े बदल रही थी और साथ साथ कोई विरह का गीत गुनगुना रही थी ।जब वो बाहर आई तो राज के मुंह से चीख निकलते निकलते बची।

   उसने उसी तरह नर्तकी के कपड़े पहन रखे थे और वो इठलाती हुई उस आदमकद शीशे के आगे आकर बैठ गई ।उसने एक दराज से एक शीशी निकाली और उसमें से थोड़ा सा इत्र जैसा कुछ द्रव्य पदार्थ उस उबटन में डाला और उसे धीरे धीरे अपने चेहरे पर लगाने लगी और अपना श्रृंगार करने लगीं ।वह जिस तरह से तैयार हो रही थी ऐसे लग रहा था जैसे ये सब चीजें कहां रखी है ये सब उसे पहले से पता है ।जब वह पूरी तरह तैयार हो गई तो स्वर्ग की अप्सरा जैसी लग रही थी ।ये सब वो तीनों मतलब लड़की के माता-पिता और राज ओट में खड़े होकर देख रहे थे।

  तभी लड़की एकदम से उठी और शीशे के पास जाकर उसमें कुछ ढूंढने लगी । थोड़ी ही देर में "खट" की आवाज से वो शीशा साइड में सरक गया और वहीं दरवाजा दिखाई देने लगा जो भूषण प्रसाद  ने राज को दोपहर में दिखाया था।।उसने मशाल उठाई और उस दरवाजे के अंदर चली गई ।पीछा करते हुए उसके मां बाप भी उस दरवाजे के अंदर चले गये और राज भी कहां पीछे रहने वाला था वो भी जल्दी से उस दरवाजे में चला गया।

लड़की मशाल लेकर आगे आगे चल रही थी ।वह जब चल रही थी तो उसके पैरों में पड़ी पायल के घुंघरू झनझन बज रहे थे ।राज को ये आवाज़ जानी पहचानी सी लगी ।वो लड़की जब सुरंग पार कर रही थी तो सुरंग अंत में खत्म हो गई और सामने खुला आसमान दिखाई देने लगा ।वहीं पहले की तरह तारें टिमटिमा रहे थे ,चांद की चांदनी चारों ओर बिखरी पड़ी थी।राज उस जगह को पहचानने की कोशिश करने लगा वह यह देखकर दंग रह गया कि ये तो महल के खंडहर थे और वो लड़की एक समतल चट्टान पर जाकर बैठ गई ।उसने थोड़ी देर मुंह आसमान की तरफ किया फिर सुबकते हुए अपना मुंह अपने दोनों पैरों में छुपाकर रोने लगी वो बोले जा रही थी,


"ओ देव ,तुम कहां चले गये ,देखो तुम्हारी चंद्रिका बरसों से तुम्हारे इंतज़ार में बैठी है ।तुम कब आओगे और मेरी मूरत बनाओगे।तुम कभी दिखते हो कभी नहीं ।देव……..देव तुम कहां हो।"


वो लड़की ये कहती जा रही थी और रोती जा रही थी ।तभी वह उठी और उस तहखाने के दरवाज़े को जोर जोर से थपथपाने लगी ।

उसका यूं रोना उसके मां बाप को बर्दाश्त नहीं हुआ और वो दौड़कर अपनी बेटी से चिपट गये ।


"बिटिया ,ये क्या कर रही हो ? ये देव कौन है और तुम क्या तलाश रही हो ?"

जैसे ही उस लड़की के पिता ने उसे झिंझोड़ा वो लड़की बेहोश होकर उनकी गोद में गिर गई।तभी लड़की की मां रोने लगी,

"हाय राम ,ये मेरी बिटिया पर किस भूत प्रेत का साया आ गया है जो ये ऐसी बहकी बहकी बातें कर रही है ।"


"अब चुप भी कर परी की मां ।अब ये सोच आगे क्या करना है?" वह दोनों हाथों से परी को उठाकर कंधे पर लादने लगा । क्यों कि बेहोशी की वजह से परी बेजान वस्तु बन चुकी थी।

राज ने मशाल की रोशनी में उस व्यक्ति का चेहरा देखा तो जाना पहचाना सा लगा । दिमाग पर ज़ोर डाला तो पता चला "अरेरेरे…. ये तो हमारे यहां माली  का काम करता है।हूमममम…. क्या नाम है इसका हां श्यामलाल

अच्छा तो ये माली की बेटी है परी जो मुझे बार बार दिखाई देती है।पर ये अपने आप को चंद्रिका क्यों कह रही है ? इसका मतलब है ये उस दिन कोठी में मेरे कमरे में भी आई थी ।पर ये मुझे देखकर देव क्यों कहती हैं। राज का सिर चकराने लगा और वह सिर पकड़ कर वहीं बैठ गया ।

   थोड़ी देर में उसने अपने आप को चेताया तो पाया वो उन खंडहरों में अकेला था परी के माता पिता उसे लेकर जा चुके थे ।उसने अपने घर का रास्ता पकड़ा और धीरे धीरे चलने लगा ।उसने मोबाइल ओन किया तो पता चला रात के तीन बज चुके थे।वह लगातार चले जा रहा था और सोचता जा रहा था कि इसका मतलब परी ही पिछ्ले जन्म में चंद्रिका थी तभी उसे ये सब पता है लाल हवेली में क्या क्या कहां रखा है ।वह सभी रास्ते भी जानती है।

राज जब घर पहुंचा तो सुबह के चार बज चुके थे । उसके पास दरवाजे की एक और चाभी थी वो नयना या अंकल को डिस्टर्ब नहीं करना चाहता था इसलिए चुपचाप दरवाजा खोलकर अपने कमरे में जाकर रजाई में दुबक गया।



कहानी अभी जारी है...…...…

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3 Comments

Mohammed urooj khan

25-Oct-2023 12:03 AM

👌🏾👌🏾👌🏾

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KALPANA SINHA

12-Aug-2023 07:19 AM

Nice part

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Varsha_Upadhyay

08-Aug-2023 10:29 PM

Nice part 👌

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